भारत में खेती भले ही मजबूरी और दुर्दशा का पर्याय के तौर पर देखी जाती हो, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों और किसान और किसान उत्पादक संगठन अपनी मेहनत और कुशलता से खेती का एक अलग ही स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं। एक ऐसा स्वरूप जो उम्मीद, समृद्धि और खुशियों का दूसरा नाम है। एनसीडीईएक्स आईपीएफ ट्रस्ट डीडी किसान पर प्रसारित होने वाले अपने साप्ताहिक कार्यक्रम मंडी डॉट कॉम के लिए ऐसे किसानों और एफपीओ की कहानियां तलाश कर आपके लिए पेश करता है। उन्हीं कहानियों को आप यहां देख सकते हैं.
Mandi.com: खेती के सिकंदर - Episode- 342
खेती के सिकंदर में देखिए कुछ ऐसे किसानों की कहानी जिन्होंने कभी सरकारी योजनाओं के फायदा लेने के उद्देश्य से संगठन की नींव रखी और अब संगठन के बदौलत वहां के किसान खेती के नए-नए तरीकों से लेकर अपनी उपज की मार्केटिंग भी कर रहे हैं।
मंडी डॉट कॉम की खास पेशकश खेती के सिकंदर में देखिए राजस्थान के बीकानेर जिला में रहने वाले एक किसान की कहानी जिन्होंने अपनी मेहनत और जुनून के बदौलत बेजान जमीन में खजूर और अनार की खेती कर दूसरे किसानों के लिए रॉल मॉडल बन गये हैं
राजस्थान के ऐतिहासिक शहर भरतपुर के डीग, जिसे वैसे तो जल महलों का शहर कहा जाता है, लेकिन जब बात किसानों के लिए पानी के इंतजाम की हो, तो मौसम कुछ बदल सा जाता है। राजस्थान के डीग से सरसों की मार्केटिंग में मुश्किलों से जूझते एफपीओ की कहानी
कृषि क्षेत्र से जुड़े तमाम विशेषज्ञों का मानना है कि देश के किसानों की किस्मत FPO मॉडल ही बदल सकती है। लेकिन FPO को लेकर किसानों के सामने कुछ अलग चुनौतियां भी है। भारतपुर स्थित उत्थान मस्टर्ड प्रोड्यूसर कंपनी के सामने कौन-सी चुनौतियां हैं? देखिए हमारे इस खास रिपोर्ट में
हरियाणा के जींद में रहने वाले किसान नीरज ढांडा ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद थाई ग्वावा की खेती शुरू की। फिर अपने उत्पादों को बेचने के लिए ऑनलाइन तरीके से डायरेक्ट मार्केटिंग की और 350 रुपये प्रति किलो का भाव हासिल किया। फिर वह यहीं नहीं रुके। नीरज ने अपनी खेती के तौर-तरीकों में सुधार किया और आज करीब 500 परिवारों के लिए किचेन के वन-स्टॉप शॉप बन गये हैं।
खेती से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार कई स्तरों पर एक साथ प्रयास कर रही है। इन्हीं प्रयासों में नई तरह की फसलों की खोज करना, उन्हें लोकप्रिय बनाना और उनके लिए बाजार तैयार करना शामिल है। इस कड़ी में 2016 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया नेशनल एरोमा मिशन एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जिसकी मियाद 31 मार्च को खत्म हो रही है। तो आज खेती के सिकंदर में देखते हैं इस मिशन और इसे संचालित करने वाले लखनऊ के सीमैप की कहानी।
भारत में 100 में 60-70 किसानों की मुश्किल ये है कि न ज्यादा जमीन है, और न निवेश के लिए पैसा। तो आमदनी बढ़ेगी कैसे। इसीलिए खेती के सिकंदर में हम देश भर घूम कर आपके लिए खती के ऐसे मॉडल खोजते रहते हैं, जिसमें हम आपको बता सकें कि कैसे आप बिना पैसे के भी पैसा खींच सकते हैं। तो आज की हमारी कहानी आपको ऐसा ही एक मॉडल दिखाने जा रही है।
बड़े शहरों की भागमभाग में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की हो चुकी है जो जिंदगी का सुख-चैन वापस पाने के लिए गांवों की ओर लौटना चाहते हैं, खेतों की ओर लौटना चाहते हैं... लेकिन जमी-जमाई गृहस्थी और बच्चों की पढ़ाई की चिंता उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत करने नहीं देती... तो ऐसे तमाम लोगों को हमारा ये खेती का सिकंदर ज़रूर देखना चाहिए... क्योंकि आज हम ऐसे फसलों की खेती दिखाने जा रहे हैं, जो आप कहीं भी रहकर कर सकते हैं...
पुणे के एक कारोबारी परिवार की कहानी जिसने अपने घर में रसायन मुक्त सब्जियों और फलों के लिए छोटे पैमाने पर खेती की शुरुआत की और फिर धीरे-धीरे कम बजट वाली ऐसी खेती के क्षेत्र में नजीर बन गये... विधाते फार्म में आज आप 29 तरह की सब्जियों और 50 तरह के फलों के अलावा कई मेडिसिनल प्लांट के पौधे भी देख सकते हैं... खेती के सिकंदर में इस मनोरम खेती की कहानी...
वैसे तो मशरूम की खेती में कई किसानों सफलता के झंडे गाड़े हैं, लेकिन संजीत मोहंती के मॉडल की खासियत ये है कि उन्होंने बीज तैयार करने से लेकर हार्वेस्टिंग तक के सभी चरणों को स्वयं तैयार किया है... यहां टिश्यू कल्चर भी तैयार होता है, मदर स्पॉन भी बनता है और हीटिंग, कूलिंग सहित दूसरी तमाम प्रक्रियाएं भी पूरी होती हैं... हालांकि बिक्री के लिए संजीत अब भी बिचौलियों पर निर्भर हैं, जिनसे मुक्ति शायद आगे चलकर उनके टू डू लिस्ट का हिस्सा हो... देखते हैं पूरा किस्सा
कृषि कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स के एमडी विजय कुमार ने मंडी डॉट कॉम के साथ विस्तृत इंटरव्यू में नए साल के लिए किसानों के लिहाज से एक्सचेंज की योजनाओं की जानकारी दी और यह भी बताया कि आने वाले दिनों में किस तरह एक्सचेंज किसान उत्पादक कंपनियों की भागीदारी ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की योजना बना रहा है।
हम सब किसानों की हालत को लेकर बहुत परेशान रहते हैं... उनकी स्थिति सुधारने के लिए सैकड़ों लेख लिखे जा रहे हैं और शोध तथा अनुसंधान के हज़ारों पन्ने तैयार हो रहे हैं... लेकिन इन सबके बीच हम भूल गये हैं कि खेती की मूलभूत ज़रूरत है पानी... तो जैसे पानी के बिना खेती हो नहीं सकती, वैसे ही केवल पानी की व्यवस्था कर किसानों की स्थिति का कायाकल्प भी हो सकता है...
खेती के सिकंदर में आज हम आपको एक बहुत ही खास किसान उत्पादक कंपनी से मिलाने जा रहे हैं... मध्य प्रदेश के विदिशा जिले की सिरोंज एफपीसी को देश की दूसरी किसान कंपनी होने का रुतबा हासिल है... आज इसके सदस्य किसानों की संख्या आज 1900 है, लेकिन 14 साल पहले जब इसकी शुरुआत हुई थी, तब ये महज 10 किसानों की कंपनी थी... तो आज खेती के सिकंदर में आइये चलते हैं देश के बिल्कुल शुरुआती दौर की किसान कंपनी की यात्रा पर
महाराष्ट्र में हिंगोली जिले के बस्मत में कुछ किसानों की एक ऐसी कहानी जो देश में उस दौर की शुरुआत का संकेत दे रही है, जिसमें किसानों ने देश के कृषि ढांचे में मौजूद उन तमाम आधुनिक साधनों का इस्तेमाल करने की ठान ली है, जिनसे उन्हें अपनी उपज की बेहतर कीमत की गारंटी मिल सके और बिचौलियों तथा साहूकारों से मुक्ति मिल सके...
किसी भी राज्य के सीमावर्ती जिलों में अक्सर बुनियादी ढांचे से लेकर अन्य मूलभूत आवश्यकताएं किसानों के लिए समस्या बनकर ही सामने आती हैं... तेलंगाना की सीमा से सटा महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले का धर्माबाद तहसील भी इसका अपवाद नहीं है... लेकिन यहां के किसान राज्य सरकार की एफपीओ नोडल एजेंसी महाराष्ट्र एग्रीकल्चर कम्पीटिटवनेस प्रोजेक्ट, एमएसीपी और एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी, आत्मा से मिली शुरुआती मदद के बूते किसान उत्पादक संगठन के माध्यम से इन चुनौतियां का मुकाबला करने के लिए लगातार सक्रिय हैं...
दिल्ली से सटे हरियाणा के रोहतक जिले में किसान फूल कुमार ने सुभाष पालेकर से प्रेरित होकर प्राकृतिक खेती का एक ऐसा मॉडल तैयार किया है, जिसे जंगल मॉडल कहा जाता है... इसमें महज एक एकड़ में उन्होंने नींबू, मौसमी, अदरक, अंगूर, हल्दी, केला, काली मिर्च और कई तरह के फल-सब्जियां लगाएं हैं और उनका दावा है कि इससे 5 साल के भीतर प्रति एकड़ 6-12 लाख रुपये की कमाई की जा सकती है।