भारत में खेती भले ही मजबूरी और दुर्दशा का पर्याय के तौर पर देखी जाती हो, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों और किसान और किसान उत्पादक संगठन अपनी मेहनत और कुशलता से खेती का एक अलग ही स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं। एक ऐसा स्वरूप जो उम्मीद, समृद्धि और खुशियों का दूसरा नाम है। एनसीडीईएक्स आईपीएफ ट्रस्ट डीडी किसान पर प्रसारित होने वाले अपने साप्ताहिक कार्यक्रम मंडी डॉट कॉम के लिए ऐसे किसानों और एफपीओ की कहानियां तलाश कर आपके लिए पेश करता है। उन्हीं कहानियों को आप यहां देख सकते हैं.
Mandi.com: खेती के सिकंदर - Episode- 220
खेती के सिकंदर में अब तक हमने हमेशा आपको जीत की कहानियां ही दिखाई हैं... लेकिन कई बार जीत की कहानी अपनी चमक के नीचे दबे संघर्ष की दास्तां को छिपा जाती है... इसलिए हमने सोचा कि आज हम आपको किसानों के उस संघर्ष का किस्सा सुनाएं जिसमें तप कर खेती के सिकंदर पैदा होते हैं... हमारी आज की कहानी के नायक हरियाणा के चरखी दादरी जिले के ऐसे किसान हैं, जिनको न तो कुदरत ने अच्छी मिट्टी की नेमत बख्शी है और न ही बेहिसाब पानी का तोहफा दिया है:
महज फिटनेस और खेल के प्रति अपने प्यार की वजह से शुद्ध और स्वस्थ भोजन के प्रति आकर्षित हुए अभिषेक धामा को जब और कोई जरिया नहीं समझ आया, तो उन्होंने घर पर ही किचेन गार्डेन बना लिया। वहीं खेती की। और जो परिणाम आया, उसने इंजीनियरिंग की शिक्षा लिए इस युवा को किसान बना दिया, एक जैविक किसान, जो नित्य खेती के नए प्रयोग कर रहा है।
एक बैंकर की नौकरी, लाखों की तनख्वाह, चार से पांच राज्यों के जोन का हाई प्रोफाइल इंचार्ज और फिर करीब एक दशक की कॉरपोरेट जिंदगी के बाद एकाएक एक खेतिहर के तौर पर नया अवतार। कुल मिलाकर ये भोपाल के प्रतीक शर्मा की अब तक की सबसे संक्षिप्त जीवनी है। लेकिन इस जीवनी में केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक पूरे बदलते दौर की झांकी है।
इस एपिसोड में गांवों में रहने वाले युवाओं को हमने ऐसे अवसर से परिचित कराने की कोशिश की है, जिसमें ने केवल कारोबार के लिए असीम अवसर हैं, बल्कि अपने समाज के लिए कुछ करने और दूसरों की जिंदगियां बेहतर बनाने का एक संतोष भी है। तो आइए आज हम जानते हैं कि कृषि आधारित सामाजिक उद्यमिता यानी social entrepreneurship में युवा क्या कुछ कर सकते हैं।
अपने देश में खेती और किसान की पहचान अक्सर अभावों से लड़कर हासिल की जाने वाली सफलता के तौर पर होती है। अपनी इसी पहचान को मजबूत करते हुए राजस्थान के बूंदी जिले में करीब साढ़े 500 किसान हर दिन कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं। उनके इसी उत्साह का नतीजा है कि शून्य से शुरू हुई उनकी कंपनी महज़ 3 सालों में करोड़ के कारोबार का आंकड़ा पार करने को तैयार है।
मध्य प्रदेश का मण्डला जिला ऐतिहासिक तौर पर सदियों से सत्ता का केंद्र रहा है और इतिहास के किसी दौर में माहिष्मति का राज्य भी यहीं था, ऐसा कई इतिहासकारों का मानना है। लेकिन फिलहाल ये पूरा इलाका ज्यादातर आदिवासी बहुत है और इसलिए काफी पिछड़ा भी है। इसी इलाके में एक किसान उत्पादक कंपनी अपने कामकाज से बदलाव की नई कहानी लिख रही है।
तमिलनाडु के इरोड जिले में एक किसान उत्पादक कंपनी ने वैल्यू एडिशन को ही अपना मुख्य कारोबारी आधार बनाया है और अब धीरे-धीरे डायरेक्ट सेलिंग से होते हुए ऑर्गेनिक खेती के लिए सदस्य किसानों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें प्रशिक्षित करने जैसे कार्यक्रम शुरू कर रही है। पेरुंदुरई के गहन मार्केटिंग अनुभव को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि ऑर्गेनिक खेती के जरिए वो अपने सदस्य किसानों की आमदनी में खासी बढ़ोतरी करने में कामयाब रहेगी।
देश में हल्दी उत्पादन के सबसे मशहूर इलाकों में तमिलनाडु का इरोड जिला शामिल है। लेकिन यहां हल्दी के अलावा केले, धान और दालें भी अच्छी-खासी मात्रा में उगाई जाती हैं। यहां के किसान ज्यादातर डेढ़-दो एकड़ वाली जोत के हैं, तो अपनी उपज की मार्केटिंग हमेशा उनके लिए एक चुनौती है होती है। इसी का सामना करने के लिए यहां के कुछ किसानों ने कलनी एफपीसी का गठन किया और अब शानदार काम कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने चालू वर्ष के लिए पेश बजट में अपनी जड़ों की ओर लौटने और प्राकृतिक खेती की शरण में जाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की बात कही है। इस राह में कई चुनौतियां भी आने वाली हैं। लेकिन सौभाग्य से अपने देश में पहले से कई ऐसे किसान समूह हैं जो इस राह पर चलते हुए इन चुनौतियां का समाधान पेश कर रहे हैं, जो दूसरे किसानों और समूहों के लिए एक उदाहरण बन सकता है।
कम लोगों को पता है कि हल्दी की एक ऐसी भी वेरायटी होती है, जिसमें औसत करक्युमिन इरोड हल्दी के दोगुने से भी ज्यादा होता है। इस वेरायटी को लाकादोंग हल्दी कहा जाता है। पूरे देश में यह हल्दी मेघालय के दो ब्लॉक में ही पैदा होती है।
वर्द्धा के मालेगांव काली और आसपास के गांव एक पठार पर बसे हैं। इससे यहां होने वाली बारिश का सारा पानी निचले इलाकों में चला जाता है। तो पानी की कमी से निपटने के लिए जब एक एनजीओ ने एक दशक से भी पहले यहां काम शुरू किया, तो पहली बार गांव के किसान एक साथ, एक मंच पर इकट्ठा होने शुरू हुए और वहीं से पड़ी यशस्वी एफपीसी की नींव।
पूर्वोत्तर के खूबसूरत राज्य मेघालय की कुल जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई कृषि पर निर्भर है, लेकिन राज्य की जीडीपी में कृषि का हिस्सा केवल एक तिहाई है। हालांकि अब राज्य सरकार इस स्थिति को बदलना चाहती है और इसके लिए उसने एक ऐसी फसल को अपना आधार बनाने का फैसला किया है, जिसकी मेघालय वेरायटी पूरी दुनिया में अनूठी हैः
उज्जैन ज़िले की कालीसिंध एफपीसी के किसानों की कहानी सफलता की उतनी नहीं है, जितनी निरंतर प्रयास और जीजिविसा यानी जीतने की इच्छा के सकारात्मक प्रभाव की है। 30 किसानों ने ये कहानी शुरू की और कई असफलताओं के बाद भी लगातार बढ़ते हुए 750 किसानों के समूह तक पहुंचे और संसाधनों की कमी के बावजूद आगे बढ़ने का इनकी जज्बा आज भी रत्ती भर कम नहीं हुआ है।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में आम की खेती कोई खास बात नहीं, लेकिन अपने आमों को अमेरिका और जापान भेज कर दूसरे किसानों के मुकाबले दोगुने तक ज़्यादा भाव हासिल करना ज़रूर खास है। निर्यात बाज़ार में टिके रहने के लिए निरंतर बेहतर गुणवत्ता पेश करना और मांग के मुताबिक माल को डेवलप करते जाना ही इस किसान की ख़ासियत है।
उज्जैन जिले के बड़नगर एफपीसी ने अपने गठन के साल भर के भीतर कई सामूहिक गतिविधियों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है और खाद-बीज के कारोबार से लेकर बीज उत्पादन तक की गतिविधियों से अपने सदस्य किसानों की आमदनी बढ़ाने पर काम कर रही है।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में हरपाल सिंह बाजवा ने 1995 में मशरूम की खेती शुरू की और आज पूरे इलाके में मशरूम किसानों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन चुके हैं। बाजवा ने अपनी खेती को तकनीक आधारित करने के अलावा फूड प्रोसेसिंग प्लांट भी लगाया है जिसमें मशरूम, पालक और टमाटर सहित कई सब्जियों की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग कर कंपनियों को सप्लाई किया जाता है।