भारत में खेती भले ही मजबूरी और दुर्दशा का पर्याय के तौर पर देखी जाती हो, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों और किसान और किसान उत्पादक संगठन अपनी मेहनत और कुशलता से खेती का एक अलग ही स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं। एक ऐसा स्वरूप जो उम्मीद, समृद्धि और खुशियों का दूसरा नाम है। एनसीडीईएक्स आईपीएफ ट्रस्ट डीडी किसान पर प्रसारित होने वाले अपने साप्ताहिक कार्यक्रम मंडी डॉट कॉम के लिए ऐसे किसानों और एफपीओ की कहानियां तलाश कर आपके लिए पेश करता है। उन्हीं कहानियों को आप यहां देख सकते हैं.
Mandi.com: खेती के सिकंदर - Episode 194
हरियाणा के करनाल जिले में 6 दोस्तों ने मिलकर 100 एकड़ से ज़्यादा खेत में ड्रिप इरीगेशन और मल्चिंग का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया और फिर ऑफ सीजन की रणनीति के जरिए आज सालाना 5 करोड़ रुपये तक का टर्नओवर कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सेना के एक कर्नल ने नौकरी छोड़ने के बाद अपने मित्र के साथ मिलकर खेती शुरू की। कई सब्जियों के साथ प्रयोग करने के बाद तब कर्नल को एक नई राह मिली जब पास की मंडी से कुछ कारोबारी उनके उगाए गाजर को खोजते हुए उनके खेत पहुंचे। इसके बाद कर्नल ने केवल गाजर की खेती पर जोर लगाया और धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते कारवां यहां तक पहुंचा कि आज उनकी कंपनी पूरे उत्तर भारत में विलायती गाजर का भाव तय कर रही है।
पॉन्डिचेरी से 25 किलोमीटर दूर तमिलनाडु का कडलूर जिला, जहां बलुई मिट्टी के कारण खेती कठिन है और जो दो दशक पहले तक भयंकर माइग्रेशन से जूझ रहा था, आज आसपास के जिलों के लिए रोजगार का केंद्र बन गया है। यह चमत्कार हो सका है एक जादुई घास की खेती के कारण, जिसे वेटिवर कहते हैं। यह घास किसानों को बेकार पड़ी बलुई मिट्टी वाली खेत से भी एकड़ का लाख रुपये तक की आमदनी दे रही है।
पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिले में रहने वाले गुरवीर सिंह ने इलाके में पहली बार फूलों की खेती की शुरुआत की और आज उनके फूल ज़िले से निकलकर अमृतसर, दिल्ली और गुजरात तक खुशबू बिखेर रहे हैं। ग्लैडुलस और गेंदा सहित 20 एकड़ पर कई फूलों की खेती कर रहे गुरवीर हालांकि बाजार और लेबर को फूलों की खेती का सबसे बड़ा चैलेंज मानते हैं, लेकिन यह भी सच है कि इन चुनौतियों को पार कर ही उन्होंने सफलता के झंडे गाड़े हैं।
गुजरात के साबरकांठा जिले का हिम्मतनगर। औसतन 1 एकड़ से भी कम जमीन वाले आदिवासी किसानों को लेकर बना यहां का साबर आर्ट एंटरप्राइज एफपीसी एक शानदार व्यावहारिक मॉडल है, यह समझने के लिए कि किस तरह किसानों की आमदनी को दोगुना किया जा सकता है। इस एफपीसी के सदस्यों की आमदनी जो 2015 में 35000 रुपये तक थी, आज 2019 में 75000 रुपये तक पहुंच चुकी है।
महाराष्ट्र के अकोला जिले में अकोट ब्लॉक के तहत कुछ किसानों का एक समूह अकोट एग्रो एफपीसी के बैनर तले तमाम कठिनाइयों से लड़ते हुए आज उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां वह न केवल अपने सदस्य किसानों बल्कि आसपास के अन्य किसानों की फसलों की सफाई और ग्रेडिंग में भी उनकी मदद कर रहा है|
विदर्भ के वाशिम जिले में यह एक ऐसे किसान समूह की कहानी है जिसके किसी भी किसान ने कभी साहूकार से कर्ज नहीं लिया। इसलिए क्योंकि यहां हर किसान एक-दूसरे से जुड़ा है और एक-दूसरे की समस्याओं का साझेदार है। फिर क्यों नहीं समूह के किसान खेती में भी हर दिन नई सफलताओं की कहानियां लिखेंगे? तो देखते हैं कृषि माउली एफपीसी के किसानों की इन्हीं सफलताओं की कहानियां
ऐसे वक्त में, जब किसान और खेती समस्याओं का ही पर्याय बन चुके हों, ऐसे में यदि हम ग्राम्य जीवन के एक ऐसे टिकाऊ मॉडल से रूबरू हो सकें, जिसने एक, दो, पांच या दस नहीं, बल्कि 32 गांवों के हज़ारों लोगों की ज़िंदगियां बदल दी हों, तो इससे बेहतर और क्या होगा? तो चलिए देखते हैं मध्य प्रदेश के आगर जिले मेः
तमिलनाडु में तंजावुर के नजदीक पुडुकोट्टै जिले के किसान राजू नरसिम्मन को खेती विरासत में नहीं मिली। लेकिन जीवन के अधिकांश हिस्से में वायु सेना के एक अधिकारी के रूप में देश की सेवा करने वाले नरसिम्मन ने सेना के बाद कई अन्य नौकरियां करने के बाद आखिरकर खेती में उतरने का फैसला किया, तो क्या हुआ? आइए देखते हैः